लालच ने मित्रता को किया शर्मसार

The greed for dowry, and indeed the dowry system as an institution, calls for the severest condemnation.Supreme Court in 1983

लालच ने मित्रता को किया शर्मसार:



अभियोग की मूलभूत जानकारी:

भगवंत सिंह बनाम पुलिस आयुक्त, दिल्ली

समतुल्य उद्धरण: 1983 SCR (3) 109

न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय, भारत।

न्यायाधीश: आर. एस. पाठक, पी. एन. भगवती

अभियोग की पार्श्वभूमी:

एक दुखियारे पिता भगवंत सिंह ने अपनी विवाहित बेटी गुरिन्दर कौर की हत्या के प्रकरण मे उसे न्याय दिलाने के लिए यह अभियोग दाखिल किया था। इस अभियोग मे सेंट्रल जांच ब्यूरो से जल्द से जल्द इस मामले मे जांच पूरी करने के लिए निर्देश मांगे गए थे।

गुरिन्दर कौर सुन्दर, चतुर एवं पढीलिखी कन्या थी। भगवंत सिंह भारतीय राजस्व सेवा मे कार्यरत थे तथा श्री कर्तार सिंह शॉनी उनके एक सहकर्मी थे एवं दोनों की तीस साल से ज्यादा की मित्रता थी। अमरजीत सिंह कर्तार सिंह का बेटा हैं जिसकी दिल्ली मे मोटर पार्ट्स की दुकान थी। कर्तार सिंह और भगवंत सिंह ने मित्रता को नातेदारी मे बदलने के निर्णय लिया तथा गुरिन्दर एवं अमरजीत का विवाह तय कर दिया।

पिता भगवंत एवं बेटी गुरिन्दर दहेज प्रथा के कट्टर विरोधक थे। भगवंत के अनुसार विवाह के पूर्व ही यह तय हुआ था की इस विवाह मे दहेज दहेज की मांग नहीं की जाएगी और दहेज दिया या लिया नहीं जाएगा। गुरिन्दर और अमरजीत का विवाह हुआ और दोनों का वैवाहिक जीवन कुछ महीनों तक सुख से चल रहा था, दोनों प्रेम से साथ रह रहे थे। फिर सास ने गुरिन्दर को परोक्ष रूप से ये कहना शुरू किया था की गुरिन्दर के पिता ने तय बातचीत के अनुसार आभूषण एवं पैसों के रूप मे उपहार विवाह मे नहीं दिए। पर भगवंत ने इस बात को अनदेखा करते हुए, किसी भी तरह के दहेज की मांग को समर्थन नहीं दिया। और यही दे सास ने गुरिन्दर को प्रताड़ित करना शुरू किया। गुरिन्दर गर्भवती थी परंतु सास के बुरे बर्ताव एवं तनाव के कारण उसका गर्भपात हो गया। गुरिन्दर की सास ने प्रताड़ित करते हुए ये भी ताना मारा की जबतक सास को सोने का हार वो नहीं देंगी तब तक उसे बच्चा नहीं होगा। इसीबीच अमरजीत ने भगवंत से अपने व्यापार के लिए पचास हजार रुपयों की मांग की थी। भगवंत अपने विचार पर कायम थे। उधर गुरिन्दर की समस्याए और बढ़ गई और बार बार ये ताना उसे सुनना पड़ता था की उसके ससुराल वाले ये विवाह करके फस गए। दहेज प्रथा की कट्टर विरोधी गुरिन्दर ने इस प्रताड़ना का खुल कर विरोध करना शुरू किया और उसके बाद वो उस घर मे एक द्वेषपूर्ण वातावरण मे रहने लगी।

फिर 9 अगस्त 1980 के दिन, विवाह के केवल दस महीनों के बाद, 22 वर्षीय गुरिन्दर का शरीर अमरजीत के घर के स्नानघर मे बड़ी बेरहमी से केरोसिन से जली हुई हालत मे मिला। अमरजीत के परिवार के अनुसार, पूरा परिवार प्रातःकाल ही गुरुद्वारा गया था, जब वे वापस आए तब गुरिन्दर ने परिवार के आठ लोगों के लिए नाश्ता बनाया था, उसके बाद पती-पत्नी ने नाश्ता किया और सबेरे के साढेदस बजे अमरजीत अपने काम के लिए निकाल गया। और उसके एक घंटे बाद गुरिन्दर का शरीर स्नानघर मे मिला। उसके बाद उस स्नानघर का दरवाजा घर के नौकर और बड़ी बहु सतिंदर ने तोड़ कर खोला, आग बुझाई और १००% जली हुई हालत में गुरिंदर को सवा बारह बजे कर्तार सिंह ने राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती किया। उसी दिन दोपहर तीन बजे पुलिस उप निरीक्षक ने इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा ५०७ के तहत प्राथमिकी दर्ज की और धारा ३०९ के तहत जांच पड़ताल शुरू की। डॉक्टर ने कहा कि गुरिंदर अपना बयान देने की स्थिति में नहीं है, इसीलिए पुलिस उप निरीक्षक ने इसे आत्महत्या का मामला मान लिया। उसी दिन शाम को सवा आठ बजे गुरिंदर ने अपने प्राण त्याग दिए।

क्या सबूत मिले?

पोलिस को उस स्नानघर में ५लीटर का केरोसिन का टीन का डब्बा मिला। दो माचिस की डिब्बियां मिली। एक आयने पर साबुन के से ये लिखा मिला की 'किसी को भी दोषी न पकड़ा जाए, पिंकी'। ये भी कहा गया था की स्नानघर का दरवाजा बाहर से तोड़ा गया। उसके बाद दहेज प्रथा पर आक्रोश जताते हुए पूरे दिल्ली भर मे इस घटना की सुनवाई जल्द से जल्द की जाए ऐसी मांग होने लगी।

पोलिस की जांच:

आईपीसी की धार ३०९ के तहत जांच शुरू हो गई थी। भगवंत ने दहेज की प्रताड़ना की बात बार बार पुलिस को बताई, तब जाकर २९ नवंबर १९८० के दिन दहेज प्रतिषेध अधिनियम १९६१ की धारा ४ ‘दहेज मांगने के लिए शास्ति’ को सम्मिलित किया गया। फिर १५ मई १९८१ के दिन आईपीसी की धारा ३०६ ‘आत्महत्या के लिए उकसाना’ को सम्मिलित किया गया। २९ अगस्त १९८१ तक दिल्ली पुलिस इस प्रकरण मे जांच कर रही थी और उसके बाद उन्होंने ये अनुमान लगाया की यह मामला आत्महत्या का हैं।

केन्द्रीय जांच ब्यूरो

पुलिस के हिसाब से ये आत्महत्या थी पर भगवंत सिंह को पूरा भरोसा था की गुरिन्दर की हत्या की गई। पर इसके बाद यह प्रकरण गृह मंत्रालय, भारत सरकार के आदेश के अनुसार केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को १० सितंबर १९८१ के दिन हस्तांतरित किया गया था। जब पोलिस किसी प्रकरण मे ठीक से जांच नहीं करती तब उस प्रकरण को सीबीआई को हस्तांतरित किया हैं। ऐसा करने के लिए पीड़ित को अर्जी करनी पड़ती हैं। इस मामले मे घर के नौकर को बिना बयान लिखाए और पुलिस की अनुमति लिए उसके गाव भेज दिया गया था। भगवंत और उसके परिवार के लोग जब गुरिनदर को मिलने अस्पताल गए थे तब वो बात कर रही थी और ये बार कर्तार सिंह ने अपने बयान मे बताई थी। सभी गवाहों के बयानों मे काफी तफ़ावत थी। पोलीस के अनुसार भगवंत सिंह ने बयान देने से मनाई की थी जिसपर शंका जताई गई। जो सबूत मिले उनकी जांच मे भी देरी की गई। जिस कंबल से आग बुझाई गई वो कंबल पुलिस ने अपने कब्जे मे नहीं लिया था। जिस साबुन के टुकड़े से आयने पर लिखा गया वो साबुन का टुकड़ा भी पुलिस ने अपने काबे मे नहीं लिया इसीलिए पुलिस की जांच पर शंका थी। इसीलिए यह मामला सीबीआई को दिया गया। गुरिनदर का भी बयान पुलिस ने लिया नहीं जो इस मामले मे बहुत ज्यादा जरूरी था। इस मामले मे गुरिनदर की चचेरी बहन राजिंदर पाल कौर, जो खुद एक डॉक्टर थी, उसने भी पुष्टि की थी की गुरिनदर बात कर सकती थी, फिर भी उसका बयान नहीं लिया गया। पड़ोसी जगजीत सिंह के हिसाब से गुरिनदर का शरीर आधा स्नानघर मे था और आधा बाहर वरांडा मे था, इस बयान को पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया और न ही उनका बयान लिखा कर लिया।

न्यायालय का अभिमत

ऐसे मामलों मे पीडिता का मृत्यपूर्व कथन अत्यंत महत्वपूर्ण होता हैं।

किसी महिला का अपने पती के घर इस तरह किसी अपराध का पीड़ित होने पर उस महिला का विश्वास डगमगा जाता हैं, ऐसे मे पीडिता मे विश्वास जगाकर उसका बयान लेने के लिए महिला पोलिस कर्मी को यह उत्तरदायित्व देना चाहिए।

न्यायालय ने कोरोनर्स ऐक्ट १८७१ को ऐसे मामलों मे जांच के लिए लागू करने के लिए कहा। इस कानून मे अपघात, हत्या, आत्महत्या या अन्य किसी भी कारण से मृत्यु हो जाए, ऐसे मामलों मे मृत्यु के कारणों की तत्काल जांच के प्रावधान हैं।

न्यायालय ने सीबीआई को तीन महीनों मे इस घटना की जांच पूरी करने के आदेश दिए।


Criminal Jurisprudence

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